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वो बुतों ने डाले हैं वस्वसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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वो बुतों ने डाले हैं वस्वसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़्याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया

जो नफ़स था ख़ार-ए-गुल बना जो उठा तो हाथ क़लम हुये
वो निशात-ए-आह-सहर गई वो विक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया

न वो रंग फ़स्ल-ए-बहार का न रविश वो अब्र-ए-बहार की
जिस अदा से यार थे आश्ना वो मिज़ाज-ए-बाद-ए-सबा गया

अभी बादबाँ को तह् रखो अभी मुज़तरिब है रुख़-ए-हवा
किसी रास्ते में हैं मुंतज़िर वो सुकूँ जो आके चला गया