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"वो भी सराहने लगे अरबाबे-फ़न के बाद / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर

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वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न<ref>कलाकारों</ref> के बाद ।
 
वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न<ref>कलाकारों</ref> के बाद ।
दादे-सुख़न<ref>कविता की प्रशंसा</ref> मिली मुझे तर्के-वतन<ref>वतन छोड़ना</ref> के बाद ।
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दादे-सुख़न<ref>कविता की प्रशंसा</ref> मिली मुझे तर्के-सुखन<ref>लिखना छोड़ना</ref> के बाद ।
  
 
दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
 
दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
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गुरबत<ref>परदेश</ref> की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
 
गुरबत<ref>परदेश</ref> की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन<ref>वतन की क़द्र</ref> हुई हमें तर्के-वतन के बाद
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क़द्रे-वतन<ref>वतन की क़द्र</ref> हुई हमें तर्के-वतन<ref>वतन छोड़ना</ref> के बाद
  
 
इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
 
इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं

12:52, 31 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न<ref>कलाकारों</ref> के बाद ।
दादे-सुख़न<ref>कविता की प्रशंसा</ref> मिली मुझे तर्के-सुखन<ref>लिखना छोड़ना</ref> के बाद ।

दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तेरी अंजुमन के बाद ।

एलाने-हक़ में ख़तरा-ए-दारो-रसन<ref>फाँसी का ख़तरा</ref> तो है
लेकिन सवाल ये है कि दारो-रसन के बाद ।

होंटों को सी के देखिए पछताइयेगा आप
हंगामे जाग उठते हैं अकसर घुटन के बाद ।

गुरबत<ref>परदेश</ref> की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन<ref>वतन की क़द्र</ref> हुई हमें तर्के-वतन<ref>वतन छोड़ना</ref> के बाद

इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद ।

शब्दार्थ
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