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वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई / सलीम अहमद
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वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
ऐसी चली हवा-ए-शाम सारे चराग़ ले गई
शाख़ ओ गुल ओ समर की बात कौन करे कि एक रात
बाद-ए-शिमाल आई थी बाग़ का बाग़ ले गई
वक़्त की मौज तुंद-रौ आई थी सू-ए-मय-कदा
मेरी शराब फेंक कर मेरे अयाग़ ले गई
दिल का हिसाब क्या करें दिल तो उसी का माल था
निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं अब के दिमाग़ ले गई
बाग़ था उसे में हौज़ था हौज़ था उस में फूल था
ग़ैर की बे-बसीरती मुझ से सुराग़ ले गई