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"शबरी बन मन / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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एक लगन
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शबरी बन मन
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राम मिलेंगे
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कर नित्य नमन
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हो आराधन
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चरन-सुमिरन
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सदा अर्चन
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तन-मन अर्पन
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‘रघु-नंदन’
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बस एक रटन
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करुणा-घन!
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तरस रहा मन
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राम मिलेंगे
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तपन तन-मन
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मूक रुदन
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अविरल क्रन्दन
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आर्त पुकार
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कब दोगे दर्शन
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मैं अकिंचन
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रच पुष्प-अल्पना
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सजा आसन
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चुन-चुन सुमन
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उर संचित
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वेदना विसर्जन
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राम मिलेंगे
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स्वागत करना तू
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साश्रु नयन
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फूलों की अंजलि से
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धीरज रख
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व्याकुल मत होना
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आ ही जायेंगे
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श्री करुणायतन
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अँसुवन से
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चरन-पखारन
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अभिनंदन
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नयन-दीप सँग
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हो नीराजन
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वे राजीव-लोचन
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राम मिलेंगे
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मीठे बेर सँजोले
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झरबेरी के
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ओ रे! मन पगले!
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आसन बैठा
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चाख-चाख खिलाना
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मोद-मगन
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भक्त-वत्सल प्रभु
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स्वीकार लेंगे
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साँचा वही वरण
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प्रेम-ज्वाल से
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दीप्त योग-अगन
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लीन उन्हीं में
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हो प्राण-समर्पण
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तुझे राम मिलेंगे
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15:47, 21 मई 2012 का अवतरण

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एक लगन
शबरी बन मन
राम मिलेंगे
कर नित्य नमन
हो आराधन
चरन-सुमिरन
सदा अर्चन
तन-मन अर्पन
‘रघु-नंदन’
बस एक रटन
करुणा-घन!
तरस रहा मन
राम मिलेंगे
तपन तन-मन
मूक रुदन
अविरल क्रन्दन
आर्त पुकार
कब दोगे दर्शन
मैं अकिंचन
रच पुष्प-अल्पना
सजा आसन
चुन-चुन सुमन
उर संचित
वेदना विसर्जन
राम मिलेंगे
स्वागत करना तू
साश्रु नयन
फूलों की अंजलि से
धीरज रख
व्याकुल मत होना
आ ही जायेंगे
श्री करुणायतन
अँसुवन से
चरन-पखारन
अभिनंदन
नयन-दीप सँग
हो नीराजन
वे राजीव-लोचन
राम मिलेंगे

मीठे बेर सँजोले
झरबेरी के
ओ रे! मन पगले!
आसन बैठा
चाख-चाख खिलाना
मोद-मगन
भक्त-वत्सल प्रभु
स्वीकार लेंगे
साँचा वही वरण
प्रेम-ज्वाल से
दीप्त योग-अगन
लीन उन्हीं में
हो प्राण-समर्पण
तुझे राम मिलेंगे


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