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शब्द और छन्द / स्वदेश भारती

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मैं शब्द बनूँ और तुम छन्द
मैं बनूँ मधुप रस पराग रँजित
पँखुड़ियों में बन्द
तुम बनो रसराज बसन्त की कली
खिली-खिली, मधुमादित माधुर्य, मोद भरी निरानन्द

किन्तु समय होता बहुत बड़ा छली
जो पतझर बनकर अपने हाथों में
तूफ़ान, चक्रवात लेकर आता
हमारे सपने चूर-चूर कर जाता
और मैं शब्द बनते-बनते छन्द बन जाता हूँ ।

कोलकाता, 27 अप्रैल 2013