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"शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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21:56, 25 मार्च 2010 के समय का अवतरण

शब, कि बर्क़े-सोज़े-दिल<ref>दिल जलाने वाली बिजली</ref> से ज़ोहरा-ए-अब्र<ref>बादल का पित्ता</ref> आब<ref>पानी</ref> था
शोला-ए-जवाला<ref>नाचती हुई आग</ref> हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब<ref>भंवर का हर चक्कर</ref> था

वां करम को उज़्रे-बारिश<ref>बारिश का बहाना</ref> था इनागीरे-ख़िराम<ref>गति की लगाम थामे हुए</ref>
गिरये<ref>रुदन</ref> से यां पुनबा-ए-बालिश<ref>तकिए की रूई</ref> कफ़े-सैलाब<ref>पानी का झाग</ref> था

वां ख़ुद आराई<ref>आत्मसज्जा</ref> को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क<ref>अश्रु-समूह</ref> में तारे-निगह<ref>निगाह</ref> नायाब<ref>दुर्लभ</ref> था

जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छटा</ref> ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू<ref>पानी की धारा</ref>
यां रवां<ref>बह रहा था</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था

यां सरे-पुर-शोर<ref>कड़वाहट भरा सिर</ref> बेख़्वाबी<ref>नींद से जग कर</ref> से था दीवार-जू<ref>दीवार ढूँढना</ref>
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था

यां नफ़स<ref>सांस</ref> करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी<ref>मस्ती की सभा की शमआ़</ref>
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब<ref>एकत्र मित्रों का बिछावन</ref> था

फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज<ref>लहर</ref>-ए-रंग का
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन<ref>जलना</ref> का बाब<ref>हालत</ref> था

नागहां<ref>सहसा</ref> इस रंग से ख़ूं-नाबा<ref>खून की बूंदे</ref> टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन<ref>नाख़ून की कुरेद का मज़ा</ref> से लज़्ज़त-याब<ref>आनन्दित</ref> था

नाला<ref>आह</ref>-ए-दिल में शब अन्दाज़-ए-असर नायाब था
था सिपन्द<ref>एक काला दाना जो आग में गिरकर आवाज़ देता है</ref>-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर<ref>प्रतिद्वंदी की मिलन-सभा</ref>, गो बेताब था

मक़दम-ए-सैलाब<ref>बाढ़ का स्वागत</ref> से दिल क्या निशात-आहंग<ref>आनन्दित</ref> है
ख़ाना-ए-आशिक़<ref>प्रेमी का घर</ref> मगर साज़-ए-सदा-ए-आब<ref>पानी का बाजा</ref> था

नाज़िश-ए-अय्याम-ए-ख़ाकस्तर-नशीनी<ref>धरती पर बैठ कर बिताए दिनों का गर्व</ref> क्या कहूं
पहलूए-अन्देशा<ref>चिंतन की गोद</ref> वक़्फ़<ref>आराम</ref>-ए-बिस्तर-ए-संजाब<ref>मखमल</ref> था

कुछ न की अपने जुनून-ए-ना-रसा<ref>असहाय पागलपन</ref> ने, वरना यां
ज़र्रा-ज़र्रा<ref>कण-कण</ref> रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान<ref>सूरज से ईर्ष्या</ref> था

आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों<ref>कैदीयों</ref> की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा<ref>प्रेम</ref> का बाब<ref>स्रोत</ref> था

याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम<ref>जाल</ref> का
इन्तज़ार-ए-सैद<ref>शिकार की प्रतीक्षा</ref> में इक दीदा-ए-बेख़्वाब<ref>उनींदे नेत्र</ref> था

मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते
उसके सैल-ए-गिरयां<ref>आंसुओं की बाढ़</ref> में गरदूं<ref>आसमान</ref> कफ़-ए-सैलाब<ref>बाढ़ की झाग</ref> था

शब्दार्थ
<references/>