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शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब

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शब, कि बर्क़े-सोज़ें-दिल<ref>दिल जलाने वाली बिजली</ref> से ज़ोहरा-ए-अब्र<ref>बादल का पित्ता</ref> आब<ref>पानी</ref> था
शोला-ए-जव्वाला<ref>नाचती हुई आग</ref> हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब<ref>जल-भंवर</ref> था

वां करम को उज़्रे-बारिश<ref>बारिश का बहाना</ref> था इनागीरे-ख़िराम<ref>गति की लगाम थामे हुए</ref>
गिरयां<ref>रुदन</ref> से यां पम्बए-बालिश<ref>तकिए की रूई</ref> कफ़े-सैलाब<ref>पानी का झाग</ref> था

वां ख़ुद आराई<ref>आत्मसज्जा</ref> को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क<ref>अश्रु-समूह</ref> में तारे-निगह<ref>निगाह</ref> नायाब<ref>अलभ्य</ref> था

जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छटा</ref> ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू<ref>पानी की धारा</ref>
यां रबां<ref>बह रहा धा</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था

यां सरे-पुर शोर<ref></ref> बेख़्वाबी<ref></ref> से था दीवार-जूर<ref></ref>
वां वो फ़रक़े-नाज़<ref></ref> महवे-बालिशे-कमख़वाब था

यां नफ़स करता था रौशन शम`-ए बज़म-ए बे-ख़वुदी
जलवह-ए गुल वां बिसात-ए सुहबत-ए अहबाब था

फ़रश से ता `अरश वां तूफ़ां था मौज-ए रनग का
यां ज़मीं से आसमां तक सोख़तन का बाब था

{15,8}
नागहां इस रनग से ख़ूं-नाबह टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए काविश-ए नाख़ुन से लज़ज़त-याब था

{15,9}
Some editions treat only verses 9-15 as a separate ghazal.

नालह-ए दिल में शब अनदाज़-ए असर नायाब था
था सिपनद-ए बज़म-ए वसल-ए ग़ैर गो बेताब था

{15,10}
मक़दम-ए सैलाब से दिल कया नशात-आहनग है
ख़ानह-ए `आशिक़ मगर साज़-ए सदा-ए आब था

{15,11}
नाज़िश-ए अययाम-ए ख़ाकिसतर-निशीनी कया कहूं
पहलू-ए अनदेशह वक़फ़-ए बिसतर-ए सनजाब था

{15,12}
कुछ न की अपनी जुनून-ए ना-रसा ने वरनह यां
ज़ररह ज़ररह रू-कश-ए ख़वुरशीद-ए `आलम-ताब था

{15,13}
This is the start of a verse-set that includes {15,13-14}.

आज कयूं परवा नहीं अपने असीरों की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मिहर-ओ-वफ़ा का बाब था

{15,14}
याद कर वह दिन कि हर इक हलक़ह तेरा दाम का
इनतिज़ार-ए सैद में इक दीदह-ए बे-ख़वाब था

{15,15}
मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरनह देखते
उस के सैल-ए गिरयह में गरदूं कफ़-ए सैलाब था

शब्दार्थ
<references/>