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"शरद की साँझ के पंछी / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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ऊपर फैला है आकाश, भरा तारों से | ऊपर फैला है आकाश, भरा तारों से | ||
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भार-मुक्त से तिर जाते हैं | भार-मुक्त से तिर जाते हैं | ||
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पंछी डैने बिना फैलाये । | पंछी डैने बिना फैलाये । | ||
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जी होता है मैं सहसा गा उठूँ | जी होता है मैं सहसा गा उठूँ | ||
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::उमगते स्वर | ::उमगते स्वर | ||
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::जो कभी नहीं भीतर से फूटे | ::जो कभी नहीं भीतर से फूटे | ||
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::कभी नहीं जो मैं ने - | ::कभी नहीं जो मैं ने - | ||
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::कहीं किसी ने - गाये । | ::कहीं किसी ने - गाये । | ||
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किन्तु अधूरा है आकाश | किन्तु अधूरा है आकाश | ||
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::हवा के स्वर बन्दी हैं | ::हवा के स्वर बन्दी हैं | ||
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मैं धरती से बँधा हुआ हूँ - | मैं धरती से बँधा हुआ हूँ - | ||
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::हूँ ही नहीं, प्रतिध्वनि भर हूँ | ::हूँ ही नहीं, प्रतिध्वनि भर हूँ | ||
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जब तक नहीं उमगते तुम स्वर में मेरे प्राण-स्वर | जब तक नहीं उमगते तुम स्वर में मेरे प्राण-स्वर | ||
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तारों मे स्थिर मेरे तारे, | तारों मे स्थिर मेरे तारे, | ||
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जब तक नही तुम्हारी लम्बायित परछाहीं | जब तक नही तुम्हारी लम्बायित परछाहीं | ||
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कर जाती आकाश अधूरा पूरा । | कर जाती आकाश अधूरा पूरा । | ||
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भार-मुक्त | भार-मुक्त | ||
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ओ मेरी संज्ञा में तिर जाने वाले पंछी | ओ मेरी संज्ञा में तिर जाने वाले पंछी | ||
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देख रहा हूँ तुम्हें मुग्ध मैं । | देख रहा हूँ तुम्हें मुग्ध मैं । | ||
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यह लो : | यह लो : | ||
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लाली से में उभर चम्पई | लाली से में उभर चम्पई | ||
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उठा दूज का चाँद कँटीला । | उठा दूज का चाँद कँटीला । | ||
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22:09, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण
ऊपर फैला है आकाश, भरा तारों से
भार-मुक्त से तिर जाते हैं
पंछी डैने बिना फैलाये ।
जी होता है मैं सहसा गा उठूँ
उमगते स्वर
जो कभी नहीं भीतर से फूटे
कभी नहीं जो मैं ने -
कहीं किसी ने - गाये ।
किन्तु अधूरा है आकाश
हवा के स्वर बन्दी हैं
मैं धरती से बँधा हुआ हूँ -
हूँ ही नहीं, प्रतिध्वनि भर हूँ
जब तक नहीं उमगते तुम स्वर में मेरे प्राण-स्वर
तारों मे स्थिर मेरे तारे,
जब तक नही तुम्हारी लम्बायित परछाहीं
कर जाती आकाश अधूरा पूरा ।
भार-मुक्त
ओ मेरी संज्ञा में तिर जाने वाले पंछी
देख रहा हूँ तुम्हें मुग्ध मैं ।
यह लो :
लाली से में उभर चम्पई
उठा दूज का चाँद कँटीला ।