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शरद / अज्ञेय

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साँझ! सूने नील में दोले है कोजागरी का दिया
हार का प्रतीक - दिया सो दिया, भुला दिया जो किया!
किन्तु शारद शरद चाँदनी का साक्ष्य, यह संकेत जय का है
प्यार जो किया सो जिया, धधक रहा है हिया, पिया!
'''इलाहाबाद, 5 सितम्बर, 1948'''
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