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शहर नहीं मरा / श्रीनिवास श्रीकांत

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बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
शहर नहीं मरा

गाया प्रेत-पिशाचों ने मंगल
कूदे-खिड़कियों से बेनक़ाब आदमी
पकड़ने उन बेहया आवाज़ों को
उड़े बाज़ तिलस्मी जंगलों की दिशा में

जंगले
रेलिंग
हवेलियां खड़े रहे
ध्यानस्थ खड़े रहे


देवदारुओं से लिपटी
फ़िरंगियों के पाप-प्रेम की
खिलखिलाहटें पगलायीं

बुलाहटें कल शाम के इतिहास की
माथा फोड़ती रहीं पुराने चण्डुखानों की चौखटों पर
और आते-जाते अजनबी का बाजू पकड़
मौत की घाटियों में स्किइंग करती रही
झबरी आवारा हवा