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"शहर में ढूंड रहा हूँ के सहारा दे दे / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर

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अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे|
 
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दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
 
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
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मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा,
 
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तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
 
तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
वो बिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|
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वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|
  
 
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10:30, 15 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे|
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे|

पेड़ सब नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं,
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे|

वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श,
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे|

दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे|

मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा,
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे|

डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना,
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे|

जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को,
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे|

तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|