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"शहीदों की चिताओं पर / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’" के अवतरणों में अंतर
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16:59, 15 अगस्त 2010 का अवतरण
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा ।।
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा ।।
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल ।
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा ।।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़ ।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा ।।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा ।।
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा ।।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे ।
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा ।।
रचनाकाल : 1916