भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शान से छूकर फ़लक को मुस्कराती हैं पतंगें / शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 29 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर' |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शान से छूकर फ़लक को मुस्कराती हैं पतंगें।
ज़िन्दगी के गीत गाती मन-लुभाती हैं पतंगें॥

दे रहीं संदेश प्रिय को प्रेम की पाती बनी हैं।
ओढ़ कर चूनर सलोनी-सी लजाती हैं पतंगें॥

शीत की करने विदाई माघ में ले तिल-मिठाई.
सूर्य को देने निमंत्रण आज आती हैं पतंगें॥

डोर जिसके हाथ में हो मौज़-मर्ज़ी बस उसी की।
बे-ख़बर अंजाम से हँसती-हँसाती हैं पतंगें॥

हो रहे हैं देवता रवि उत्तरायण इसलिए अब।
मौन क्यों होंगे 'अधर' जब गुनगुनाती हैं पतंगें॥