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शाप पतित गद्दारों को / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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शाप पतित गद्दारों को ।
जो निज को सम्मान्य बताते
आदर दुश्मन के घर पाते
खुदको सहनशील ठहराते
छद्मपूर्ण जिनकी कुलकरणी
जिनको पर-घर लगता प्यारा
थू थू थू मक्करों को ।
शाप पतित गद्दारों को ।।
जिनकी प्रायोजित सब बातें
रंग - रँगीली काली रातें
दुश्मन से हैं गहरे नाते
षडयंत्रों में लिप्त हमेशा
जिनको अपना देश नकरा
छिः छिः छिः बटमारों को ।
शाप पतित गद्दारों को ।।
जो प्रशस्ति नित रिपु से पाते
रिपु के अवगुण गुण बतलाते
प्रिय स्वदेश को तुच्छ जताते
ब्रह्मानंद जिन्हें मिलता है
अगर देश हो अपना हारा
धिक् धिक् धिक् लब्बारों को ।
शाप पतित गद्दारों को ।।