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शिशुपाल सिंह 'निर्धन' / परिचय

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'शिशु' जी जनकवि थे। वे इटावा के पहले ऐसे कवि थे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उनकी कविताओं की लगभग दस पुस्तकें दक्षिण भारत से प्रकाशित हुई। इटावा जनपद में पहली बार राष्ट्रपति पुरस्कार उन्हें 1962 में मिला। विशेष बात यह है कि यह सम्मान इसी वर्ष से शुरू हुआ था। इसके लिए पूरे प्रदेश से एक ही व्यक्ति को चुना जाता था। यह सम्मान पाने वाले 'शिशु' पहले व्यक्ति बने। उनकी नीरजा, यमुना किनारे, हल्दीघाटी की एक रात, पूर्णिमा, दो चित्र आदि देश विख्यात कृतियां हैं। उनकी पनघट व मरघट रचनाएं तो इतनी व्यावहारिक हैं कि आज भी लोग उन्हें सुनकर या पढ़कर जीवन दर्शन के इतने करीब पहुंच जाते हैं जितना भागवत और रामायण सुनकर भी नहीं पहुंचते। मरघट की एक पंक्ति, 'नाड़ी छूट गई तो भैया मरघट को ले आये', आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। आज जनपद के बहुत कम लोग उनके नाम से परिचित हैं।
उदी के ठाकुर बिहारी सिंह भदौरिया के पुत्र के रूप में 9 सितंबर 1911 में जन्मे इस कालजयी रचनाकार और शिक्षक की आज ही के दिन अर्थात 27 अगस्त 1964 को सर्पदंश से मृत्यु हो गई थी। उन्होंने थियोसोफीकल मांटेसरी स्कूल में पढ़ाया। बाद में वे उदी स्थित प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बन गए थे।