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"शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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सिर्फ़ सत्ता का उन्हें सुख चाहिए  , फिर कुछ नहीं
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कल तलक वो साइकिल थे आज हाथी हो गये
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आँकड़ों के खेल में वो प्रगतिवादी हो गये
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वो अगरचे लूटता है तो बुरा क्या है मगर
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उठ पडे़ मज़दूर तो आतंकवादी हो गये
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ओ मेरे तालाब की भोली मछलियो सावधान
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ये वही बगुले हैं जो कहते हैं त्यागी हो गये
 
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15:14, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये
पर, यहाँ अफ़वाह फैली लोग बाग़ी हो गये

महफ़िलों में आ के खु़ददारी बयाँ करते रहे
पर, सरे बाज़ार बिक जाने को राज़ी हो गये

सिर्फ़ सत्ता का उन्हें सुख चाहिए , फिर कुछ नहीं
कल तलक वो साइकिल थे आज हाथी हो गये

ले गये बच्चों के मुँह का जो निवाला छीनकर
आँकड़ों के खेल में वो प्रगतिवादी हो गये

वो अगरचे लूटता है तो बुरा क्या है मगर
उठ पडे़ मज़दूर तो आतंकवादी हो गये

ओ मेरे तालाब की भोली मछलियो सावधान
ये वही बगुले हैं जो कहते हैं त्यागी हो गये