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सतरहसौ एकतीसजँज गृन्द जग जोति विदित, भवो सम्वत्सर सोमी। कृष्ण पच्छ परतच्छदेवनको देवतर। अंअगृन्त असुरन सँहार, सुभग श्रावन तिथि नौमी॥भक्तन अनंदकर।करि विचार भृगुवारतं तृगृन्द तरनी सेतेज, विनोदानन्छ पधारे। सुरनर मुनि गन्धर्व अप्सरन आरति बारे॥शिव शक्ति महावल। हं हगृन्द हरि हरत कष्ट, हेरत जो एक पल॥सिगरे वाल गोपाल कँहधं धगृन्द धरनी कहै, अगुमन आसिरवचन दिहु।विनय मानि दाया करो।चढ़ि तवमान शिर मुकट धरिक्षं क्षगृन्द क्षमि चूक को, आप गवत निज भवन किहु॥20॥दरस देहु माया हरो॥21॥
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