भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री हनुमत अष्टक / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:26, 30 मई 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                       (छंद सवैया)
सुख सम्पति दायक, राम के पायक, सत्य सहायक, संकट हारी |
ध्यान दे ज्ञान दे शक्ति दे भक्ति दे, मुक्ति सामिप्य दे शरण तिहारी ||
रघुनन्दन के प्रिय प्रेमी तुम्ही, हनु दर्शन दे हमको शुभकारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी ||१ ||
लंकेश को गर्व गलाय दियो, मैं सुनी श्रवणा तुम लंक को जारी |
लिन्ही सिया सुधि शीघ्र महाबली, सत्य कथा तुम्हरी बलिहारी ||
दुष्ट हने क्षण एक ही में, प्रभु संतन के सब कारज सारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी || २ ||
बेर ही बेर ये टेर रह्यो हनु, फेर रह्यो इक माला तिहारी |
मंत्र न तंत्र न जानू कछु, उर प्रेम भयो लखि मूरत थारी ||
सत संगत की पल एक भली, मिली है हमको हनु की बलिहारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी || ३ ||
श्री राम ही राम रटो निशि वासर, भक्त महा बली हो व्रत धारी |
लोक बना परलोक बने, सन मारग दे हनु सत्य विचारी ||
सियाराम से नेह-सनेह रहे, उर प्रेम बढे प्रभु उमर सारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी || ४ ||
फल चार मिले उर फूल खिले, शुभ संत मिले खिली है फुलवारी |
मांगत दान दे ये वरदान दे, बीरबली महिमा तव न्यारी ||
दे धन धाम व वाम सुता सुत, मीत पुनीत दे हे ब्रह्मचारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी || ५ ||
जय कार तेरी सब लोकन में, यश छाय रह्यो हनु की बलिहारी |
वरणन कौन करे यश को, लाख के महिमा वह सारद हारी ||
शेष गणेश महेश दिनेश, सभी यश गावत हैं गुणकारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी ||६||
श्री राम बिराज रहे घट में, बजरंग बली सबसे बलकारी |
हनुमान सिवा नहीं और कोऊ, दुःख द्वन्द प्रपंच हनु भय हारी ||
स्वागत है सर्वत्र प्रभु, सब जानत हैं जग के नर नारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी || ७ ||
मंत्र षडाक्षर सिद्ध सदा, सर्वत्र करे हनु पूजन थारी |
तव द्वार से कोई न खाली गया, नर नारी की बिगरी तू ही सुधारी ||
शिवदीन की आस भरि भरी है, कबहूँ नहीं व्याप सके भव घ्यारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी ||८||
                 दोहा
सकल कमाना पूर्ण हो अष्टक पढ़े जो कोय |
निश्चय पावे भक्ति फल ज्ञान दीप उर जोय ||
लंगड़े तेरे नाम से काज चढ़े सब पेश |
भक्त राज हनुमान को करि है याद हमेश ||
राम कृष्ण हनुमान को अर्पण ये पद आठ |
सज्जन जन सब ही करे प्रेम प्यार से पाठ ||
प्रेम भाव उर भावना शुद्ध हृदय शिवदीन |
पाठ करे शुभ फल मिले ताप मिटावे तीन ||