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"श्री हीरा प्रसाद हरेन्द्र / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'" के अवतरणों में अंतर

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शरीर जड़
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कवि ‘हीरा’ केॅ
आरो आत्मा चेतन
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पढ़ै आरो गढ़ै के
बुझैं रे मन
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सुप्रवृति छै
  
शब्द, स्पर्श सें
+
कवि ‘हरेन्द्र’
रूप, रस, गंध सें
+
बहुजन हिताय
रहित ईश ।
+
श्रेणी में आवै
 
+
नित्य अजन्मा
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अनादि-अनंत छै
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परमेश्वर ।
+
 
+
सब्भे प्राणी के
+
अन्दर निवास छै
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ईश्वर के ।
+
 
+
परमेश्वर
+
उत्पत्ति-विनाशो ॅ सें
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रहित छै ।
+
 
+
परमेश्वर
+
सब्भै के नियंता छै
+
सब्भें कहै छै ।
+
 
+
आत्मचिंतन
+
संभव नै हुऐ छै
+
ज्ञान के बिना ।
+
परम धाम
+
वहेॅ छेकै, जैठाँ सें
+
जीव नै लौटै ।
+
 
+
आत्मचिन्तन
+
सम्भव नै हुऐ छै
+
ज्ञान के बिना ।
+
 
+
पुण्य-क्षीण सें
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मनुष्य मृत्युलोक
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भ्रमण करेॅ ।
+
 
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अपना पर
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जेकरा विश्वास नै
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ईश पर नै ।
+
 
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नर-तन तेॅ
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खुदा-महल छेकै
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‘नानक’ बोलै ।
+
 
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मधुमक्खी तेॅ
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फूलोॅ सें पराग लै
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मधु बनावै ।
+
 
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वृक्ष आपनोॅ
+
काटै वाला केॅ भी
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छायाए दै छै
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10:07, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

कवि ‘हीरा’ केॅ
पढ़ै आरो गढ़ै के
सुप्रवृति छै ।

कवि ‘हरेन्द्र’
बहुजन हिताय
श्रेणी में आवै ।