भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
906 bytes removed,
20:42, 10 जून 2008
[[जब सूरज जग जाता है /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] {{KKGlobal}} आँखें मलकर धीरे-धीरे <br> सूरज जब जग जाता है ।<br> सिर पर रखकर पाँव अँधेरा <br> चुपके से भग जाता है ।<br> हौले से मुस्कान बिखेरी <br> पात सुनहरे हो जाते ।<br> डाली-डाली फुदक-फुदक कर<br> सारे पंछी हैं गाते ।<br> थाल भरे मोती ले करके<br> धरती स्वागत करती है ।<br> नटखट किरणें वन-उपवन कविता कोश में<br> खूब चौंकड़ी भरती हैं ।<br> कल-कल बहती हुई नदी संकलित बच्चों के लिये रचित काव्य में <br> सूरज खूब नहाता है<br> कभी तैरता है लहरों पर<br> डुबकी कभी लगाता है ।<br>>>>>>>>>>>>>>से अधिकतर की कड़ियाँ नीचे दी गयी हैं।