भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सखि, वसन्त आया / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=गीतिका / सूर…)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|संग्रह=गीतिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|संग्रह=गीतिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
+
}}{{KKAnthologyBasant}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<poem>
 
<poem>

19:19, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
   नवोत्कर्ष छाया ।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
   मधुप-वृन्द बन्दी--
  पिक-स्वर नभ सरसाया ।

लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर,
      जागी नयनों में वन-
         यौवन की माया ।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
         स्वर्ण-शस्य-अंचल
          पृथ्वी का लहराया ।