भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सगुन-पाखी / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= सुधा गुप्ता   
 
|रचनाकार= सुधा गुप्ता   
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
[[Category: चोका]]
 
[[Category: चोका]]
 
<poem>
 
<poem>
 
 
 
आ गए फिर   
 
आ गए फिर   
 
लौट कर वे दिन
 
लौट कर वे दिन
पंक्ति 47: पंक्ति 45:
 
दिन की शाख़, टेरा
 
दिन की शाख़, टेरा
 
एक सगुन-पाखी
 
एक सगुन-पाखी
 
 
-0-
 
-0-
 
</poem>
 
</poem>

09:03, 6 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

आ गए फिर
लौट कर वे दिन
सगुन-पाखी
आज भोर होते ही
देह थिरकी
आँख शुभ फरकी
हँसी सरसों
अनगिनत खिलीं
कुईं की कली
चाह-चिड़िया उड़ी
तुम्हें पाने को
नापती आकाश है
मुक्ति लाने को
फूल महक उठे
हुई बावरी
गीत गाती फिर ती
मुग्ध तितली
सुमन-झुरमुट
उकसा रहे
भ्रमर रस-लोभी
मँडरा रहे
गूँजती उपवन
ध्वनि मर्मरी
मोहिनी पूर्वा हँसी
उषा की शोखी
बड़ी मन भावन
डग भरती
लज्जानत आनन
आए साजन
चुपके से आकर
रोली मल दी
चल दी जल्दी-जल्दी
ऐश्वर्यमयी
आई ज्योति-पालकी

शाश्वत प्रेम
आदित्य व उषा का
जग है साखी
दिन की शाख़, टेरा
एक सगुन-पाखी
-0-