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सच्ची माया / बलबीर राणा 'अडिग'

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धरती अर अगास
द्वी मायादार
टक लगे दयखणा रेन्द
एक हेका तें दिन-रात
मायालु ह्वे
कबि भिटोळी नि ह्वे द्वियों की
अर न होणे आशा
पर !
समग्र पिरेम छां यू मा
वा नीलू असमान
कबि रण-रणा घामल
कबि रिमझिम बर्खल
धरतिक कोळी भरद
अर हरि धरती नाना परकार का
फल-फूलोंsक सुगंध भेजिद
धरती अर अगास
क्वसों दूर ह्वे किन बी
समर्पित छां युगों बटिन एक दुसर पर
अर समझान्दा रेन्द दुन्यां तें पिरेम
कि !! पिरेम मा विश्वास, समर्पण छ त
दूरी क्वी अड़चन नि होंद
सच्ची माया स्वार्थ नि त्याग मंगद।