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सच न बोलना / नागार्जुन

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कवि: [[नागार्जुन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=नागार्जुन]] |संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन}}{{KKCatKavita‎}}<Poem>मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी हैभूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरेजगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने कोख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,<br>डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने कोफाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !<br>जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखाबापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !<br>सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखाभुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !<br><br>
जन-गण-मन अधिनायक जय होज़मींदार है, प्रजा विचित्र तुम्हारी साहूकार है<br>, बनिया है, व्योपारी है,भूखअन्दर-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है!<br>बंद सेलसब घुस आए भरा पड़ा है, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे<br>भारतमाता का मन्दिरजगह नहीं है जेलों मेंएक बार जो फिसले अगुआ, यमराज तुम्हारी मदद करे। <br><br>फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !
ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी काछुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, रोटी काछुट्टा घूमें हत्यारे,<br>फाड़-फाड़ कर गलादेखो, न कब से मना कर रहा अमरीका!<br>बापू की प्रतिमा हण्टर भांज रहे हैं जस के आगे शंख और घड़ियाल बजेतस ज़ालिम सारे !<br>भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजेजो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !<br><br>
ज़मींदार हैमाताओं पर, साहुकार हैबहिनों पर, बनिया हैघोड़े दौड़ाए जाते हैं !बच्चे, व्योपारी हैबूढ़े-बाप तक न छूटते,<br>सताए जाते हैं !अंदरमार-अंदर विकट कसाईपीट है, बाहर खद्दरधारी लूट-पाट है!<br>सब घुस आए भरा पड़ा , तहस-नहस बरबादी है, भारतमाता का मंदिर<br>एक बार जो फिसले अगुआज़ोर-जुलम है, फिसल रहे हैं फिरजेल-फिर-फिरसेल है। वाह खूब आज़ादी है !<br><br>
छुट्टा घूमें डाकू गुंडेरोज़ी-रोटी, छुट्टा घूमें हत्यारेहक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,<br>देखोकोई भी हो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारेनिश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !<br>जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगानेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>काल कोठरी जेलों में ही जाकर फिर जगह मिलेगी, जाएगा वह सत्तू घोलेगाजहाँ कहीं !<br><br>
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!<br>बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं!<br>मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,<br>ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है! <br><br> रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,<br>कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!<br>नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं!<br><br> सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,<br>भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचोपहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे!<br>माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,<br>हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!<br><br/poem>
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