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"सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ। | सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ। | ||
− | मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर | + | मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाक़ी हैं सीढ़ियाँ। |
तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ, | तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ, | ||
− | झुक लो | + | झुक लो ज़रा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ। |
चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे, | चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे, | ||
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मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की, | मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की, | ||
− | लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ। | + | लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ। |
रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के, | रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के, | ||
− | हर | + | हर तल पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ। |
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13:12, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ।
मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाक़ी हैं सीढ़ियाँ।
तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ,
झुक लो ज़रा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ।
चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे,
जल्दी उसे ज़मीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ।
मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की,
लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ।
रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के,
हर तल पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ।