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"सज्जन कितना बदल गया है / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर

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दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है ।
 
दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है ।
 
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साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com के बस्तर के 'वरिष्ठतम साहित्यकार' की रचनाओं को अंतरजाल पर प्रस्तुत करने के प्रयास के अंतर्गत संग्रहित। </poem>
 

14:15, 29 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

दहकन का अहसास कराता, चंदन कितना बदल गया है
मेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया है ।

आँखों ही आँखों में, सूख गई हरियाली अंतर्मन की;
कौन करे विश्वास कि मेरा, सावन कितना बदल गया है ।

पाँवों के नीचे से खिसक-खिसक जाता सा बात-बात में;
मेरे तुलसी के बिरवे का, आँगन कितना बदल गया है ।

भाग रहे हैं लोग मृत्यु के, पीछे-पीछे बिना बुलाए;
जिजीविषा से अलग-थलग यह, जीवन कितना बदल गया है ।

प्रोत्साहन की नई दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;
दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है ।