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सदस्य:Dr. Manoj Srivastav

11 bytes added, 11:52, 14 जुलाई 2010
नपुंसक सवालों के
बलबूते पर
योग्य उत्तर पैदा नहीं हो सकते,
उसके बांझपन में
कुछ भी बो लो ,
वह अंकुरित हो
छायादार वट नहीं बन सकता.
इसीलिए,
अब कहीं भी छाया नहीं है,
भ्रष्टाचार के गरल ग्रीष्मकाल में
संस्कृतियाँ, समाज, इंसान
सभी धूं-धूं कर जल रहे हैं
और जल रहे हैं
उनके मन में दफ़्न
असंख्य मृत-अर्धमृत सवाल
जो उनकी आँखों से बिम्बित
हथियारबंद दमदार सैनिक.
सवालों की बाझ बांझ कोख से उत्तर पाने के अदम्य दौर में ,
पराजय के पूर्वाभास ने
सवालों को औरताना लिबास में
सबसे बड़ा कब्रिस्तान है
जिसमें जिंदे और अबोध सवाल
नवजात ही गाद गाड़ दिए जाते हैं
इसके पहले कि हम
सवालों के गर्द खाए दर्पण में
अपना स्वप्निल संसार जोफ जोह सकें ,
हंसती-खेलती
तुष्ट-संतुष्ट