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11:30, 6 फ़रवरी 2009 का अवतरण

प्यारे बच्चों, आज आपके लिये आएगी। एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी आशा है कहानी आपको पसन्द

महलो की रानी

एक कहानी बड़ी पुरानी आज सुनो सब मेरी जुबानी विशाल सिन्धु का पानी गहरा टापू एक वहाँ पर ठहरा

छोटा सा टापू था प्यारा कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर

धूप मे अपनी देह गर्माने टापू पे बैठती इसी बहाने उसपर इक जादू का महल था जिसका किसी को नही पता था

चाँद की चाँदनी मे बाहरआता और सुबह होते छुप जाता उसको कोई भी देख न पाता न ही किसी का उससे नाता

एक दिन इक भूली हुई मछली रात को जादू की राह पे चल दी सोचा रात वही पे बिताए और सुबह होते घर जाये

देखा उसने अजब नज़ारा चमक रहा था टापू सारा सुंदर सा इक महल था उस पर फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर

देख के उसको हुई हैरानी पर मछली थी बडी सयानी जाकर खडी हुई वह बाहर पूछा ! बोलो कौन है अन्दर

क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो? नज़र किसी को नही आते हो? अन्दर से आई आवाज़ खोला उसने महल का राज

रानी के बिन सूना ये महल इसलिए रक्षा करता है जल ढक लेता इसे दिन के उजाले क्योकि दुनिया के दिल काले .................................... मछली रानी बडी सयानी समझ गई वो सारी कहानी चली गई वो महल के अन्दर अब न रहेगा महल भी खँडहर .......................................... मछली बन गई महल की रानी अब न रक्षा करेगा पानी महल को मिल गई उसकी रानी खत्म हो गई मेरी कहानी