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(नया पृष्ठ: प्यारे बच्चों, आज आपके लिये आएगी। एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो ...)
 
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प्यारे बच्चों,
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<sup>प्यारे बच्चों,
आज आपके लिये आएगी।
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आज आपके लिये एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी
एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी
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<br />आशा है कहानी आपको पसन्द आएगी।
आशा है कहानी आपको पसन्द  
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<br />महलो की रानी
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<br />एक कहानी बड़ी पुरानीआज सुनो सब मेरी जुबानी
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<br />विशाल सिन्धु का पानी गहरा
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<br />टापू एक वहाँ पर ठहरा
  
महलो की रानी
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<br />छोटा सा टापू था प्याराकुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
 
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<br />स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
एक कहानी बड़ी पुरानी
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<br />मछलियाँ आ कर बैठती अक्सरधूप मे अपनी देह गर्माने
आज सुनो सब मेरी जुबानी
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<br />टापू पे बैठती इसी बहाने
विशाल सिन्धु का पानी गहरा
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<br />उसपर इक जादू का महल था
टापू एक वहाँ पर ठहरा
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<br />जिसका किसी को नही पता था
 
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छोटा सा टापू था प्यारा
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<br />चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
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<br />और सुबह होते छुप जाता
स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
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<br />उसको कोई भी देख न पाता
मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर
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<br />न ही किसी का उससे नाता
 
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धूप मे अपनी देह गर्माने
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<br />एक दिन इक भूली हुई मछली
टापू पे बैठती इसी बहाने
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<br />रात को जादू की राह पे चल दी
उसपर इक जादू का महल था
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<br />सोचा रात वही पे बिताए
जिसका किसी को नही पता था
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<br />और सुबह होते घर जाये
 
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चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
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<br />देखा उसने अजब नज़ारा
और सुबह होते छुप जाता
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<br />चमक रहा था टापू सारा
उसको कोई भी देख न पाता
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<br />सुंदर सा इक महल था उस पर
न ही किसी का उससे नाता
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<br />फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर
 
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एक दिन इक भूली हुई मछली
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<br />देख के उसको हुई हैरानी
रात को जादू की राह पे चल दी
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<br />पर मछली थी बडी सयानी
सोचा रात वही पे बिताए
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<br />जाकर खडी हुई वह बाहर
और सुबह होते घर जाये
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<br />पूछा ! बोलो कौन है अन्दर
 
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देखा उसने अजब नज़ारा
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<br />क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
चमक रहा था टापू सारा
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<br />नज़र किसी को नही आते हो?
सुंदर सा इक महल था उस पर
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<br />अन्दर से आई आवाज़
फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर
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<br />खोला उसने महल का राज
 
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देख के उसको हुई हैरानी
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<br />रानी के बिन सूना ये महल
पर मछली थी बडी सयानी
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<br />इसलिए रक्षा करता है जल
जाकर खडी हुई वह बाहर
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<br />ढक लेता इसे दिन के उजाले
पूछा ! बोलो कौन है अन्दर
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<br />क्योकि दुनिया के दिल काले
 
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क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
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<br />मछली रानी बडी सयानी
नज़र किसी को नही आते हो?
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<br />समझ गई वो सारी कहानी
अन्दर से आई आवाज़
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<br />चली गई वो महल के अन्दर
खोला उसने महल का राज
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<br />अब न रहेगा महल भी खँडहर
 
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रानी के बिन सूना ये महल
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<br />मछली बन गई महल की रानी
इसलिए रक्षा करता है जल
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<br />अब न रक्षा करेगा पानी
ढक लेता इसे दिन के उजाले
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<br />महल को मिल गई उसकी रानी
क्योकि दुनिया के दिल काले
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<br />खत्म हो गई मेरी कहानी
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मछली रानी बडी सयानी
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समझ गई वो सारी कहानी
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चली गई वो महल के अन्दर
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अब न रहेगा महल भी खँडहर
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मछली बन गई महल की रानी
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अब न रक्षा करेगा पानी
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महल को मिल गई उसकी रानी
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खत्म हो गई मेरी कहानी
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11:43, 6 फ़रवरी 2009 का अवतरण

प्यारे बच्चों, आज आपके लिये एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी
आशा है कहानी आपको पसन्द आएगी।


महलो की रानी


एक कहानी बड़ी पुरानीआज सुनो सब मेरी जुबानी
विशाल सिन्धु का पानी गहरा
टापू एक वहाँ पर ठहरा


छोटा सा टापू था प्याराकुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
मछलियाँ आ कर बैठती अक्सरधूप मे अपनी देह गर्माने
टापू पे बैठती इसी बहाने
उसपर इक जादू का महल था
जिसका किसी को नही पता था

चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
और सुबह होते छुप जाता
उसको कोई भी देख न पाता
न ही किसी का उससे नाता

एक दिन इक भूली हुई मछली
रात को जादू की राह पे चल दी
सोचा रात वही पे बिताए
और सुबह होते घर जाये

देखा उसने अजब नज़ारा
चमक रहा था टापू सारा
सुंदर सा इक महल था उस पर
फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर

देख के उसको हुई हैरानी
पर मछली थी बडी सयानी
जाकर खडी हुई वह बाहर
पूछा ! बोलो कौन है अन्दर

क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
नज़र किसी को नही आते हो?
अन्दर से आई आवाज़
खोला उसने महल का राज

रानी के बिन सूना ये महल
इसलिए रक्षा करता है जल
ढक लेता इसे दिन के उजाले
क्योकि दुनिया के दिल काले
....................................
मछली रानी बडी सयानी
समझ गई वो सारी कहानी
चली गई वो महल के अन्दर
अब न रहेगा महल भी खँडहर
..........................................
मछली बन गई महल की रानी
अब न रक्षा करेगा पानी
महल को मिल गई उसकी रानी
खत्म हो गई मेरी कहानी