भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सन्त्रास उगा है / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 26 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्षों-दो वर्षों में
यह इतिहास उगा है
फैलेगा, फूलेगा

तक्षशिला को ढो
लाना है नालन्दा
सबका क़द छीलें
चले हमारा रन्दा
वर्षों-दो वर्षों में
यह सन्त्रास उगा है
फैलेगा, फूलेगा

नाक कटेगी अब
इसकी, उसकी, सबकी
कोने में दुबकी
क्यों सुबकी नागमती
वर्षों-दो वर्षों में
यह उपहास उगा है
फैलेगा, फूलेगा

सन् सत्ताइस को
लाएँ सत्तावन में
फ़र्क नहीं पड़ता
तब जन्में, अब जन्में
वर्षों-दो वर्षों में
यह विश्वास उगा है
फैलेगा, फूलेगा

आकाश अकड़ता
थूकें इस पर जीभर
आँख उठाता तू
करदें जीना दूभर
वर्षों-दो वर्षों में
नया विकास उगा है
फैलेगा, फूलेगा