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"सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं।
 
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प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं।
 
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10:25, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं।
छोड़ मुझे वो जब-जब मैके जाने लगते हैं।

उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन,
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं।

उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से,
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं।

जाने किस भाषा में चौका, बेलन, कूकर सब,
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं।

जिनकी ख़ातिर ख़ुद को मिटा चुके हैं, वो ‘सज्जन’,
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं।