भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सन 1992 / अदनान कफ़ील दरवेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 24 जून 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब मैं पैदा हुआ
अयोध्या में ढहाई जा चुकी थी एक क़दीम मुग़लिया मस्जिद
जिसका नाम बाबरी मस्जिद था

ये एक महान सदी के अन्त की सबसे भयानक घटना थी
कहते हैं — पहले मस्जिद का एक गुम्बद
धम्म् की आवाज़ के साथ ज़मीन पर गिरा था
और फिर दूसरा और फिर तीसरा
और फिर गिरने का जैसे अनवरत् क्रम ही शुरू हो गया

पहले कीचड़ में सूरज गिरा
और मस्जिद की नींव से उठता ग़ुबार
और काले धुएँ में लिपटा अन्धकार
पूरे मुल्क पर छाता चला गया
 
फिर नाली में हाजी हश्मतुल्लाह की टोपी गिरी
सकीना के गर्भ से अजन्मा बच्चा गिरा
हाथ से धागे गिरे, रामनामी गमछे गिरे, खड़ाऊँ गिरे
बच्चों की पतँगें और खिलौने गिरे
बच्चों के मुलायम स्वप्नों से परियाँ चीख़ती हुईं निकलकर भागीं
और दन्तकथाओं और लोककथाओं के नायक चुपचाप निर्वासित हुए
एक के बाद एक
    
फिर गाँव के मचान गिरे
शहरों के आसमान गिरे
बम और बारूद गिरे
भाले और तलवारें गिरीं
गाँव का बूढ़ा बरगद गिरा
एक चिड़िया का कच्चा घोंसला गिरा
गाढ़ा गरम ख़ून गिरा
गँगा-जमुनी तहज़ीब गिरी
नेता-परेता गिरे, सियासत गिरी
और इस तरह एक के बाद एक नामालूम कितना कुछ
भरभरा कर गिरता ही चला गया

"जो गिरा था, वो शायद एक इमारत से काफ़ी बड़ा था.."
कहते-कहते अब्बा की आवाज़ भर्राती है
और गला रुन्धने लगता है

इस बार पासबाँ नहीं मिले काबे को सनमख़ाने से
और एक सदियों से मुसलसल खड़ी मस्जिद
देखते-देखते मलबे का ढेर बनती चली गई

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर
हाँ, उसी हिन्द पर
जिसकी सरज़मीं से मीर-ए-अरब को ठंडी हवाएँ आती थीं
वे कहाँ हैं ?

मैं उनसे पूछना चाहता हूँ
कि और कितने सालों तक गिरती रहेगी
ये नामुराद मस्जिद
जिसका नाम बाबरी मस्जिद है
और जो मेरे गाँव में नहीं
बल्कि दूर अयोध्या में है

मेरे मुल्क़ के रहबरों और ज़िन्दा बाशिन्दो, बतलाओ मुझे
कि वो क्या चीज़ है जो इस मुल्क़ के हर मुसलमान के भीतर
एक ख़फ़ीफ़ आवाज़ में
 न जाने कितने बरसों से
मुसलसल गिर रही है

जिसके ध्वंस की आवाज़
अब सिर्फ़ स्वप्न में ही सुनाई देती है !

(रचनाकाल: 2017, दिल्ली)