भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना आस के देखल जाई / जलज कुमार अनुपम

Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 7 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpuriRachna}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरखा के दिन उतर चुकल बा
कुचकुच अनहरिया पसरल बा
अरजल धन खतम हो गइल
बांचल बा अब ऊहो जाई
तबो खतम ना होखी दुनिया
फेर से सपना देखल जाई
सपना बा त जिनगी बाटे
जिनगी बा त सपना बाटे
आन्ही पानी आई जाई
समय दुखाई, समय रिगाई
आई प्रलय त देखल जाई
आँख नीन से माँतल बाटे
कुछऊ होखे सूतल जाई
कुछ ना बाँची तब्बो भइया
सपना आस के देखल जाई ।