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सपने का झुनझुना / अनूप अशेष

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किसके लिए दहकती सुबहें
गली हुई
बूढ़ी महराजिन

बड़े द्वार की ड्योढ़ी जैसे
बूढ़े बच्चे काम-धाम में,
खाली पिंजड़े में
डैने हैं
क्या रखा मुर्दा-मुकाम में

चिड़िया नई डाल पर बैठे
छोड़ा घोंसला
जैसे हो घिन

एक कटोरे में दुपहर की
जैसे पूरी उमर भरी हो,
काँपे पाँव
झुर्रियाँ पहने
माई की हर चीख मरी हो

सपने का झुनझुना रात में
लेकर आती
दिन की बाँझिन