भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफर / जलज कुमार अनुपम

Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 15 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात और दिन की
आपाधापी
अंधीदौड़ अंतहीन सुरंग की
हिसाब –किताब के बाद
हथेली में टपके
चंद खोटे सिक्के
इस भाग –दौड़ में
हम कही छुट गए
कुछ टूट गए
कुछ फुट गए
खेत से पेट तक का सफर
और सफर की थकान के बाद
सराय रूपी घर में पड़े बिस्तर पर
रोज का लुढ़कना
फिर सुबह को जगना
और फिर
एक नये सफर की तैयारी
यह है अपनी लाचारी