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सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा / आनंद नारायण मुल्ला

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सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा ।
कितनी सुनासान है तेरी महफ़िल साकी ।।

ख़त्म हो जाए न कहीं ख़ुशबू भी फूलों के साथ,
यही खुशबू तो है इस बज़्म का हासिल साखी ।