भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सबको मालूम है मैं शराबी नहीं / अनवर फ़र्रूख़ाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनवर फ़र्रूख़ाबादी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatGeet}}
+
{{KKCatGhazal}}
 +
 
 
<poem>
 
<poem>
 
सब को मालूम है मैं शराबी नहीं
 
सब को मालूम है मैं शराबी नहीं

10:47, 27 सितम्बर 2018 का अवतरण

सब को मालूम है मैं शराबी नहीं
फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ
सिर्फ़ एक बार नज़रों से नज़रें मिलें
और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ

मुझ को मैं खुश समझता है सब बड़ा खुश
क्यूँ के उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
मेरी रग रग में नशा मुहब्बत का है
जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ

हाल सुन कर मेरा सहमे-सहमे हैं वो
कोई आया है ज़ुल्फ़ें बिखेरे हुए
मौत और ज़िंदगी दोनों हैरान हैं
दम निकलने न पाए तो मैं क्या करूँ

कैसी लूट कैसी चाहत कहाँ की खता
बेखुदी में हाय अनवर खिदू(?) का नशा
ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं
तुम को पीना न आए तो मैं क्या करूँ