भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब की सुनना, अपनी करना / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
फूलों का अंदाज़ सिमटना | फूलों का अंदाज़ सिमटना | ||
− | + | ख़ुशबू का अंदाज़ बिखरना | |
बरसों याद रखें ये मौजें | बरसों याद रखें ये मौजें |
15:14, 17 जून 2020 के समय का अवतरण
सब की सुनना, अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना
अनगिन बूँदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना
फूलों का अंदाज़ सिमटना
ख़ुशबू का अंदाज़ बिखरना
बरसों याद रखें ये मौजें
दरिया से यूँ पार उतरना
अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनिया की राहों से गुज़रना