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"सभी से आँख मिलाकर सँभाल रक्खा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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सभी से आँख मिलाकर सँभाल रक्खा है।
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कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे,
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वो जिसके हाथ का पत्थर सँभाल रक्खा है।
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तेरे चमन से न जाए बहार इस ख़ातिर,
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हृदय में आज भी पतझर सँभाल रक्खा है।
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चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए,
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ये सोच जिस्म का बंजर सँभाल रक्खा है।
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तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर, तूफाँ,
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किसी के प्यार ने लंगर सँभाल रक्खा है।
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तुझे पसंद जो आया सनम वही मैंने,
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ग़ज़ल में आज भी तेवर सँभाल रक्खा है।
 
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22:30, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

सभी से आँख मिलाकर सँभाल रक्खा है।
नयन में प्यार का गौहर सँभाल रक्खा है।

कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे,
वो जिसके हाथ का पत्थर सँभाल रक्खा है।

तेरे चमन से न जाए बहार इस ख़ातिर,
हृदय में आज भी पतझर सँभाल रक्खा है।

चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए,
ये सोच जिस्म का बंजर सँभाल रक्खा है।

तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर, तूफाँ,
किसी के प्यार ने लंगर सँभाल रक्खा है।

तुझे पसंद जो आया सनम वही मैंने,
ग़ज़ल में आज भी तेवर सँभाल रक्खा है।