भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभ्यता / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने इतनी शराफ़त से मुझसे हमबिस्तरी की
कि मैं कुछ कर भी न सकती थी
दो बच्चे पैदा करने के सिवा
और वो भी ख़ुदा जाने कैसे पैदा हो गए कब बड़े हुए
और मुड़कर अपने रास्ते चले गए

सिवा इसके कि मुझे माँ कहते थे
बल्कि अब भी अम्माँ कहते हैं
मैं उनके लिए अजनबी ही रही

मैं कौन थी यह उन्होंने कभी जानने की कोशिश न की

मेरा रास्ता भी कहीं खो गया
कभी कभी वो आधी रात को चमकता है