भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझ कर हमने वादा कर लिया है / श्रद्धा जैन

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 3 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= श्रद्धा जैन }} {{KKCatGhazal}} <poem> अभी से खुद ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी से खुद को आधा कर लिया है
बिछड़ने का इरादा कर लिया है

मोहब्बत से भी हम उकता गए हैं
ये सौदा भी ज़ियादा कर लिया है

भला वादे निभाये जाते हैं क्या ?
समझ कर हमने वादा कर लिया है

ये दुनिया आज भी रंगीन ही है
हम ही ने खुद को सादा कर लिया है

मुआफ़ उसको नहीं करना था लेकिन
अब इस दिल को कुशादा कर लिया है