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भीमकाय समय के कदमों पर
मैं खडा खड़ा हूं हां, खडा खड़ा ही हूं -- जमीन कोडता कोड़ता हुआऔर वह बरसों से वहीं खडा खड़ा है--
अपनी हथेलियों पर
भूत, भविष्य और वर्तमान
की तीनों गेंदें
बारी-बारी उछालते हुए
टप- टप टपकाते हुए
और मैं हूं कि--
बुरी तरह ढलता जा रहा हूं
साल-दर-साल बूढे बूढ़े होते प्लेटफार्मों पर,बरसों से खाली पडे पड़े खलिहानों और
पानी को तरसती नदी तल पर,
वह खडा खड़ा है--उसी तरह अपने सिर से आसमान भेदते हुए
अपनी काली-चमकदार मूंछों पर ताव देते हुए
या, सडकसड़क-किनारे गुमटी के पास
गरमा-गरम चाय चुसुकते हुए
और ढल रहे लोगों के हाथ में
अखबारों की सूर्खियां पढते पढ़ते हुए
कप की चाय के बासी होते-होते
वह कब तक यहां जमा रहेगा
ताश खेलते हुए मवालियों पर
फ़ब्तियां कसते कसता रहेगा,
जबकि मेरे साथ ढलता जाएगा
मेरा ख्याल, -- जो बाद मेरे भीबूढे बूढ़े लोगों के दिमाग में बना रहेगा-- जेब में हाथ डाले हुए बाबुओं के होठो होठों पर तिल-तिल कर दम तोड तोड़ रही
---सिगरेट की तरह।