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"सरल नदी / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर

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किशोर उम्र में भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
 
युवा होने पर भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
 
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अधेड़ होने पर भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
 
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बूढ़ा हुआ तो ऐसे ही पार कर रहा हूँ यह नदी पैरों से  
 
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मरने के बाद जो लोग मुझे शमशान ले जाएँगे
 
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वे भी ऐसे ही पार करेंगे इसे पैरों से
 
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कंधों पर रखे मरे हुए लोग भी पुलों की तरह पार होंगे
 
कंधों पर रखे मरे हुए लोग भी पुलों की तरह पार होंगे
 
 
दूसरों के पैरों से
 
दूसरों के पैरों से
 
 
इसका जलस्तर कुछ घटता —बढ़ता ज़रूर रहा है
 
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पर यह नदी न कभी किशोर थी न युवा न अधेड़
 
पर यह नदी न कभी किशोर थी न युवा न अधेड़
 
 
मैं अपने बुढ़ापे में भी इसके बूढ़े होने का सपना नहीं देखना चाहता
 
मैं अपने बुढ़ापे में भी इसके बूढ़े होने का सपना नहीं देखना चाहता
 
 
मैं नदी के बुढ़ापे की कोई कल्पना नहीं करना चाहता
 
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यह उम्र और समय से प्रभावित न हो
 
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ऐसे ही मंद-मंथर निरंतर बहती रहे
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छोटे बड़े पत्थरों से तकराती आवाज़ मुझसे ऐसे ही कहती रहे
 
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कुछ कहो, कुछ कहो  
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किसी ने भी जूते पहन कर इसे पार नही किया
 
किसी ने भी जूते पहन कर इसे पार नही किया
 
 
यह पैरों को ही जानती है पुल की तरह
 
यह पैरों को ही जानती है पुल की तरह
 
 
यह पिंडलियों को ही जानती है खंभों की तरह
 
यह पिंडलियों को ही जानती है खंभों की तरह
 
 
यह उँगलियों को ही जानती है  चप्पुओं की तरह
 
यह उँगलियों को ही जानती है  चप्पुओं की तरह
 
 
यह हथेलियों को ही जानती है नाव की तरह
 
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यह आर-पार होने को ही जानती है कुशल-क्षेम
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मनुष्यों में पशुओं में और खेतों में यह प्यास को ही पहचानती है  
 
मनुष्यों में पशुओं में और खेतों में यह प्यास को ही पहचानती है  
 
  
 
हमारी रसोई सदा इसके पानी से ही बनी है
 
हमारी रसोई सदा इसके पानी से ही बनी है
 
 
यह बरसात में मचली तो ज़रूर पर गँदली नहीं हुई
 
यह बरसात में मचली तो ज़रूर पर गँदली नहीं हुई
 
 
हम कहते रहे इसको जोंकाणी का गदेरा या जोंकाणी की गाड
 
हम कहते रहे इसको जोंकाणी का गदेरा या जोंकाणी की गाड
 
 
दूसरे पहाड़ों से निकलने वाली नदियों के मुकाबले
 
दूसरे पहाड़ों से निकलने वाली नदियों के मुकाबले
 
 
यह दिन बाद पहुँचती है बड़ी नदी तक
 
यह दिन बाद पहुँचती है बड़ी नदी तक
 
 
तब तक हम दिल्ली से भी वापस आ जाते हैं
 
तब तक हम दिल्ली से भी वापस आ जाते हैं
 
 
और इसका पानी पी कर अपनी सच्ची प्यास बुझाते हैं  
 
और इसका पानी पी कर अपनी सच्ची प्यास बुझाते हैं  
 
  
 
बाँज के जंगल से जुड़ी हुई यह मेरे गाँव की छोटी–सी नदी है
 
बाँज के जंगल से जुड़ी हुई यह मेरे गाँव की छोटी–सी नदी है
 
 
बाँज,जिनकी टहनियों पर पल्लू खोंसे हवा चल रही है
 
बाँज,जिनकी टहनियों पर पल्लू खोंसे हवा चल रही है
 
 
ज़मीन आसमान एक किए हुए
 
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इसे मैं और क्या नाम दूँ ?
  
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लिटा, गिलास, बंटा, डिगची, पतीली और फुचैटे की आत्मा के अलावा
 
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यह नदी सरल है
 
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और शायद सरलता ही इसको एक दिन ख़तरे में डाल देगी
 
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क्योंकि आदमियों के समाज में
 
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बिना समझे कुछ भी नष्ट कर देने की बात करना सबसे सरल है
बिना समझे कुछ भी नष्ट कर देने की बात करना सबसे सरल है.
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16:59, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

किशोर उम्र में भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
युवा होने पर भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
अधेड़ होने पर भी ऐसे ही पार की यह नदी पैरों से
बूढ़ा हुआ तो ऐसे ही पार कर रहा हूँ यह नदी पैरों से

मरने के बाद जो लोग मुझे शमशान ले जाएँगे
वे भी ऐसे ही पार करेंगे इसे पैरों से
कंधों पर रखे मरे हुए लोग भी पुलों की तरह पार होंगे
दूसरों के पैरों से
इसका जलस्तर कुछ घटता —बढ़ता ज़रूर रहा है
पर यह नदी न कभी किशोर थी न युवा न अधेड़
मैं अपने बुढ़ापे में भी इसके बूढ़े होने का सपना नहीं देखना चाहता
मैं नदी के बुढ़ापे की कोई कल्पना नहीं करना चाहता
यह उम्र और समय से प्रभावित न हो
ऐसे ही मंद-मंथर निरंतर बहती रहे
छोटे बड़े पत्थरों से तकराती आवाज़ मुझसे ऐसे ही कहती रहे
कुछ कहो, कुछ कहो

किसी ने भी जूते पहन कर इसे पार नही किया
यह पैरों को ही जानती है पुल की तरह
यह पिंडलियों को ही जानती है खंभों की तरह
यह उँगलियों को ही जानती है चप्पुओं की तरह
यह हथेलियों को ही जानती है नाव की तरह
यह आर-पार होने को ही जानती है कुशल-क्षेम
मनुष्यों में पशुओं में और खेतों में यह प्यास को ही पहचानती है

हमारी रसोई सदा इसके पानी से ही बनी है
यह बरसात में मचली तो ज़रूर पर गँदली नहीं हुई
हम कहते रहे इसको जोंकाणी का गदेरा या जोंकाणी की गाड
दूसरे पहाड़ों से निकलने वाली नदियों के मुकाबले
यह दिन बाद पहुँचती है बड़ी नदी तक
तब तक हम दिल्ली से भी वापस आ जाते हैं
और इसका पानी पी कर अपनी सच्ची प्यास बुझाते हैं

बाँज के जंगल से जुड़ी हुई यह मेरे गाँव की छोटी–सी नदी है
बाँज,जिनकी टहनियों पर पल्लू खोंसे हवा चल रही है
ज़मीन आसमान एक किए हुए
इसे मैं और क्या नाम दूँ ?

लिटा, गिलास, बंटा, डिगची, पतीली और फुचैटे की आत्मा के अलावा
और प्यास की आत्मा के अलावा मैं इसे क्या नाम दूँ ?
यह नदी सरल है
और शायद सरलता ही इसको एक दिन ख़तरे में डाल देगी
क्योंकि आदमियों के समाज में
बिना समझे कुछ भी नष्ट कर देने की बात करना सबसे सरल है ।