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"सरेराह नंगा वो हो चुका उसके लिए कुछ भी नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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सरेराह  नंगा वो  हो चुका  उसके लिए कुछ भी नहीं।
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सरेराह  नंगा वो  हो चुका  उसके लिए कुछ भी नहीं
 
लोगों की नज़रों में वो गिरा  उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
लोगों की नज़रों में वो गिरा  उसके लिए कुछ भी नहीं।
  
फुटपाथ पे थे ग़रीब सोये, कार  में वो अमीर था,
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फुटपाथ पे थे ग़रीब सोये, कार  में वो अमीर था
 
वेा कुचल के उनको निकल गया उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
वेा कुचल के उनको निकल गया उसके लिए कुछ भी नहीं।
  
इन्सान  कैसे  कहूँ उसे अन्याय देख के मौन जो,
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इन्सान  कैसे  कहूँ उसे अन्याय देख के मौन जो
 
इन्सानियत का गला कटा उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
इन्सानियत का गला कटा उसके लिए कुछ भी नहीं।
  
ज़रा उस अमीर को देखिये कितने मजे से वो खा रहा,
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ज़रा उस अमीर को देखिये कितने मजे से वो खा रहा
 
वहीं भूख से कोई मर रहा उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
वहीं भूख से कोई मर रहा उसके लिए कुछ भी नहीं।
  
ये विधायकों का निवास है ‘दारूलशफ़ा’  या हरम कोई,
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ये विधायकों का निवास है ‘दारूलशफ़ा’  या हरम कोई
 
जनतंत्र कोठा है बन गया उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
जनतंत्र कोठा है बन गया उसके लिए कुछ भी नहीं।
  
दस फ़ीसदी यहाँ बदज़ुबाँ, नब्बे हैं गूँगे या  बे-जु़बाँ,
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दस फ़ीसदी यहाँ बदज़ुबाँ, नब्बे हैं गूँगे या  बे-जु़बाँ
 
दुर्भाग्य है इस देश का  उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
दुर्भाग्य है इस देश का  उसके लिए कुछ भी नहीं।
 
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23:06, 29 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

सरेराह नंगा वो हो चुका उसके लिए कुछ भी नहीं
लोगों की नज़रों में वो गिरा उसके लिए कुछ भी नहीं।

फुटपाथ पे थे ग़रीब सोये, कार में वो अमीर था
वेा कुचल के उनको निकल गया उसके लिए कुछ भी नहीं।

इन्सान कैसे कहूँ उसे अन्याय देख के मौन जो
इन्सानियत का गला कटा उसके लिए कुछ भी नहीं।

ज़रा उस अमीर को देखिये कितने मजे से वो खा रहा
वहीं भूख से कोई मर रहा उसके लिए कुछ भी नहीं।

ये विधायकों का निवास है ‘दारूलशफ़ा’ या हरम कोई
जनतंत्र कोठा है बन गया उसके लिए कुछ भी नहीं।

दस फ़ीसदी यहाँ बदज़ुबाँ, नब्बे हैं गूँगे या बे-जु़बाँ
दुर्भाग्य है इस देश का उसके लिए कुछ भी नहीं।