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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं<BR>लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं<BR><BR> यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क<BR>मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं<BR><BR> मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें<BR>और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं<BR><BR> ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर<BR>ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं<BR><BR> दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में<BR>लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं<BR><BR> बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे<BR>ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं<BR><BR> शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो<BR>साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं<BR><BR> मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त<BR>आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं<BR><BR> बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम<BR>कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं<BR><BR> मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक"<BR>है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं<BR><BR/poem>
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