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सहमते स्वर-3 / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

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आज मैंने सुई में डोरा डाल लिया
उतनी ही बड़ी सिद्धि
जितनी जग जाती
एक कविता लिख लेने में।

विगत अड़तालीस वर्षों से
तुमने मुझे ऐसा
निकम्मा बना दिया कि
कुरता-कमीज़ में
बटन तक टाँकने का
सीखा सलीका नहीं।

कुछ भी करो
हँसने का मौक़ा तो
न दो औरों को।

तुम्हें ही दोषी
ठहराएंगी पीढ़ियाँ
सीढ़िया गढ़न में
तुमने सब वार दिया
कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया
मुझसे निठल्ले को।