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"सही है, ठीक है, हमने ये ग़म सहे ही नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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गये तो ऐसे कि जैसे कभी रहे ही नहीं
 
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हज़ार दर्द हों दिल में सुनेगा कौन! गुलाब!
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हज़ार दर्द हों दिल में, सुनेगा कौन! गुलाब!
 
तुम्हारी आँख से आँसू अगर बहे ही नहीं
 
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02:19, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण


सही है, ठीक है, हमने ये ग़म सहे ही नहीं
कहें भी क्या कि जो कहने को कुछ रहे ही नहीं

मिले तो यों कि कोई दूसरा सहा न गया
गये तो ऐसे कि जैसे कभी रहे ही नहीं

हज़ार दर्द हों दिल में, सुनेगा कौन! गुलाब!
तुम्हारी आँख से आँसू अगर बहे ही नहीं