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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : इंद्रजाल  ('''रचनाकार:''' [[अनिल विभाकर]])</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : ना तीर न तलवार से मरती है सचाई ('''रचनाकार:''' [[उदयप्रताप सिंह]])</div>
 
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ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
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जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई
  
यह है इंद्रप्रस्थ का इंद्रजाल
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ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब
इसमें भूखी-नंगी जनता सुनहरे सपने देखती है
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आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई
और महारानी के दर्शन भर से धन्य हो जाती है ।
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ग़रीब जनता गौर से निहारती है महारानी को  
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उनमें उसे सत्यहरिश्चंद्र की आत्मा नज़र आती है
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उसे लगता है वे महारानी नहीं, सत्य हरिश्चंद्र की नया अवतार हैं
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इंद्रप्रस्थ की रानी कहती है देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया
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बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह
करोड़पतियों की संख्या तो बढ़ी
+
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई 
ग़रीबों की आबादी में भी इजाफ़ा हुआ
+
रानी कहती है ग़रीबी और भ्रष्टाचार बेहद चिंता की बात
+
जनता जवाब नहीं माँगती
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वह तो मंत्रमुग्ध है उनके सम्मोहन में
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ऋषियों का यह देश चाणक्य का भी है
+
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
चंद्रगुप्त का भी
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ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई
सपने तो टूट ही रहे हैं
+
जिस दिन टूटेगा इंद्रजाल जनता पूछेगी
+
रानी जी! फिर कलमाड़ी को क्यों बचाया ?
+
और राजा को क्यों हटाया?
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महारानी जी! थरूर पर हुई थू-थू
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फिर भी कम नही हुई मनमोहन की मुस्कान
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ये सब के सब तो आप के ही प्यादे हैं न
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राज आपका
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बिसात आपकी प्यादे आपके
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संविधान में सरकार भले ही चलती है संसद से
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हक़ीक़त यह है कि दस जनपथ की इच्छा के बिना
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सात रेस कोर्स का पत्ता तक नहीं हिलता
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रानी जी, पूरा देश जानता है
+
जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़
आपकी मुस्कान से ही मुस्कुराते हैं करोड़पति-अरबपति
+
बाग़े-बहार  बन  के  सँवरती है  सचाई 
आपके चहकने से आमजन हो जाता है मायूस
+
दरअसल सिर्फ़ कहने को जनपथ में रहती हैं आप
+
भले ही इस देश में आपका अपना कोई घर-बार नहीं
+
हक़ीक़त में आप राजपथ की रानी हैं
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तौर-तरीके और रहन-सहन से तो यही लगता है
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आप इंद्रप्रस्थ की महारानी हैं ।
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समय आने दीजिए महारानी जी!
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भूखी-नंगी जनता करेगी आपकी करतूतों का पूरा हिसाब
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पूछेगी क्या हुआ अफ़ज़ल का, कहाँ है कसाब ?  
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पूछेगी क्या संसद से भी बड़ा है होटल ताज ?
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महारानी जी यही है आपका राज ?
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ज़रूर टूटेगा एक दिन इंद्रजाल
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और भूखी-नंगी जनता को लगेगा
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आपमें नहीं बसती है सत्य हरिश्चंद्र की आत्मा ।
+
  
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रावण की बुद्धि, बल से न जो काम हो सके
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वो राम की मुस्कान से करती है सचाई
 
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18:36, 5 जून 2011 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक : ना तीर न तलवार से मरती है सचाई (रचनाकार: उदयप्रताप सिंह)
ना तीर न तलवार से मरती है सचाई 
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई 

ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब 
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई 

बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह 
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई  

सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते 
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई 

जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़ 
बाग़े-बहार  बन   के  सँवरती  है  सचाई   

रावण की बुद्धि, बल से न जो काम हो सके 
वो राम की मुस्कान से करती है सचाई