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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : सपने में ('''रचनाकार:''' [[डॉ० रणजीत]])</div>
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जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
 
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कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
 
कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
स्मृतियां और संभावनाओं के बियाबानों में
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स्मृतियों और संभावनाओं के बियाबानों में
 
और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
 
और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
 
बिना कुछ कहे सुने
 
बिना कुछ कहे सुने

21:16, 2 जुलाई 2011 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक : सपने में (रचनाकार: रणजीत)
भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ
जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है
तो मेरा पीछा छोड़ो
क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो

आना हो तो आओ पूरी तरह से
नहीं तो वहीं रहो मजे में
यह क्या बात हुई
कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो
कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे
और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ
और फिर यह तो भई हद है
जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
स्मृतियों और संभावनाओं के बियाबानों में
और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
बिना कुछ कहे सुने

पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे
अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की
उनकी हिम्मत नहीं है ।