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"साँझको घाम र जूनको कथा / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
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14:28, 15 मार्च 2017 का अवतरण
बाटो आउँछ कतैबाट
र पर्खिरहेको चौतारीको वास्तै नगरी
गइरहन्छ एक्लै अगाडि कताकता
नलिर्इ साथ चौतारीलार्इ।
जहीँतहीँ यस्तै छ
हरेक युगमा यस्तै नै छ।
आजसम्म कुनै चौतारीलार्इ साथ लिएर गएन बाटाले।
बाटो आयो
आइरह्यो
हिँडिरह्यो
कतै गइरह्यो
परदेसी जसरी एक्लै।
चौतारी पर्खिरह्यो
हेरिरह्यो
रोइरह्यो
निस्ताइरह्यो
गाउँबेँसी जसरी एक्लै।
न बाटो अल्झिन सक्यो
चौतारीको मायामा कतै
न चौतारी पछि लाग्न सक्यो बाटाको मोहनीमा कतै।
घामले आज साँझ पनि
यही कथा भन्यो
र बाटो लाग्यो।
जून भने अझै पछ्याउँदै छ उसैलार्इ।